दुनिया की हर बात लिख लेता हूँ,
जब खुद पे आता हूं,ठिठक सा जाता हूँ।
अपनी तन्हाइयां अपनी गहराईयां,
मैं लिख पाता नही।
जो सोचता,वो सबसे बांट लेता हूँ,
खुद पे आता हूँ रुक सा जाता हूँ।
बस खुद का हाल ए दिल किसी से,
मैं बांट पाता नहीं।
ऐसे तो हर बात समझ लेता हूँ,
अपने पे आता हूँ और उलझ जाता हूँ।
जमाने की हर उलझन सुलझा लेता हूँ,
बस खुद की उलझन
मैं सुलझा पाता नही।
वैसे तो हर बात भुला देता हूँ,
तुझपे आता हूँ बस सोचता जाता हूँ।
तेरी यादों में अक्सर खो जाया करता हूँ,
एक तू ही है जिसे
मैं भुला पाता नहीं।
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