मैं सोचता हूँ

 मैं बस सोचता हूँ तुम्हे बताऊं,

या बस यूँ ही चुप रह जाऊं,

इरादे बांधता हूँ, तोड़ देता हूँ,

इन उलझनों से निकलूँ,

या और उलझ जाऊँ।


जब भी दुखी हो जाता हूँ,

जब मैं खुशी से भर जाता हूँ,

मैं सोचता हूँ तुम्हें दिखाऊँ,

या बस यूं ही कहि छुप जाऊं।


जब भी तुमपे प्यार आता है,

या कभी गुस्सा हो जाता हूँ,

मैं सोचता हूँ तुम्हे जताऊँ,

या बस खुद में ही रह जाऊँ।


जब भी कभी दिल टूट जाता है,

कुछ हाथों से छूट जाता है,

मैं सोचता हूँ तुम्हारे सामने रोऊँ,

या बस घूँट घूँट के रह जाऊँ।

         

SHARE

Milan Tomic

    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments:

Post a Comment