पिछले 1 सप्ताह में मैं तीन घटनाओं से रूबरू हुआ हूँ। इनमे से दो घटनाएं मेरे सामने घटित हुई हैं और इनमे मैं भी शामिल था। एक घटना के बारे में इंटरनेट और अखबारों से पता चला।
#पहली_घटना भागलपुर की रहने वाली काजल जिनके ऊपर एसिड फेक दिया गया था,1 महीने के इलाज के बाद भी उन्हें बचाया नही जा सका और वो इस दुनिया से चली गईं। चुकी ये मामला आपराधिक के साथ साथ सामाजिक भी था से तो तकनीकी छात्र संगठन की प्रदेश अध्यक्षा सुष्मिता कुमारी जी ने गांधी मैदान में एक विरोध प्रदर्शन के साथ साथ एक शोक सभा का आयोजन करने का मन बनाया। इसके लिए सोशल मीडिया के द्वरा पटना में रह रहे लोगों से हमारा समर्थन करने के लिए गांधी मैदान बुलाया गया। समयानुसार जब हम वहां पहुंचे तो सुष्मिता जी और मेरे अलावा सिर्फ 2 लोग और आये थे। फेसबुक पर लोगों को आने के लिए जो पोस्ट लिखा गया था उसपे 300 से जुड़ लाइक्स थे और कई लोगों ने आने के लिए हामी भी भरी थी। खैर जो सबकी शायद अपनी कुछ मजबूरियां होंगी जिसके वजह से आ नही सके। लेकिन असली बात ये है कि जिस गांधी मूर्ति के पास हमने ये प्रदर्शन और शोक सभा रखा था वहाँ 300 से ज्यादा लोग थे चुकी हमारी संख्या कम थी तो हमने वहाँ उपस्थित लोगों से हाथ जोड़कर इस प्रदर्शन में आने के लिए अपील करते रहे लेकिन लोग बेसुध से पड़े रहे बहुत आग्रह के बाद लगभग 20 लोग पहुँचे। कुछ लोगों का रिएक्शन ऐसा था कि उनको किसी के मरने से कोई फर्क नही पड़ता। चुकी ये मामला एक लड़की का था और इस प्रदर्शन का नेतृत्व एक लड़की ही कर रही थीं तो हमने लड़कियों और महिलाओं से शामिल होने के लिए कहा लेकिन उन्हें भी इससे कोई फर्क नही पड़ रहा था।
अब #दूसरी_घटना 3 दिन पहले मैं गांधी मैदान से ही सटे हुए रास्ते से परीक्षा के बाद लौट रहा था,उसी रास्ते मे एक काली मंदिर है उसके सीढ़ी पर लगभग 30-35 लोग बैठे हुए थे। एक युवा(उम्र 25 साल लगभग) एक बुजुर्ग आदमी(उम्र 60 साल लगभग) को पूरी तरह से पिट रहा था। पिटाई का वह दृश्य दिल दहला देने वाला था। वहां बैठे सिर्फ तमाशा देख रहे थे कुछ लोग वहां खड़े भी थे और उस मार पीट को ऐसे देख रहे थे जैसे किसी फिल्म का दृश्य हो। उस लड़के को रोकने की तो छोड़िए कोई उस पिटाई का कारण तक नही पूछ रहा था। मैं जब वहां पहुँचा और उस लड़के को रोकना की अकेले कोशिश करने लगा और तब कुछ लोग मेरा साथ देने तो आये लेकिन उसे रोकने के बजाय मुझसे उस पिटाई का कारण पूछ रहे थे। मैं जैसे तैसे उसका हाथ पकड़कर रोकने की कोशिश किया लेकिन वह फिर नही माना और उस बुजुर्ग इंसान को रोड पर घसीटने लगा तब तक मुझे रोकते देख कुछ और सज्जन लोग वहाँ पहुँचे और उस बुजुर्ग को बचाया जब हमने उससे लड़के से इसका कारण पूछा तो बताया कि ये आदमी नशे में है और इसलिए वो पिट रहा है। मतलब साफ था वो लड़का कहि और का गुस्सा कहि और निकाल रहा था।
अब आते हैं #तीसरी_घटना पर जिससे आप सब परिचित हैं। याद कीजिये सूरत के उस कोचिंग में लगे आग के वीडियो को जिसमे बच्चे 4 मंजिल के बिल्डिंग से अपनी जान बचाने के लिए नीचे कूद रहे थे और वहाँ पर खड़े सैकड़ो लोग मोबाइल से वीडियो बनाने में जुटे थे। अगर यही लोग उन्हें बचाने की कोशिश करते तो शायद हम कई बच्चों की ज़िन्दगी बचा सकते थे। तीन बच्चों की मौत नीचे कूदने की वजह से हो गयी थी।
मोबाइल,सेल्फी और सोशल मीडिया के जमाने मे हम एक मरा हुआ समाज बना रहे हैं। दिन पर दिन हम असंवेदनशील बनते जा रहे हैं। हम तब तक किसी घटना से प्रभावित नही हो रहे है जब तक कि वह घटना हमारे साथ या हमारे किसी अपने के साथ घटित ना हो जाए। यहीं हालात हमे इंसानियत से दूर ले जा रही है और हम जानवरों से भी बद्दतर होते जा रहे हैं। इंसान जब अपनी इंसानियत खो देता है उसी वक्त वह मर जाता है और हम मर रहे हैं। अब भी वक्त है इस समाज को बेहतर बनाया जा सकता है हमे बस अपने अंदर के इंसान को जिंदा करना है।
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